गुरुवार, 31 मार्च 2022

स्वर ज्ञान, अपने स्वांस से जाने भविष्य

आपकी सांस ही आपके सारे सवालों का जवाब देगी


स्वर-ज्ञान


॥ दोहा ॥ 


काल ज्ञानादिक थकी, लही आगम अनुमान।

 गुरु किरपा करि कहत हूँ, शुचि स्वरोदय ज्ञान।।


 मैं पृथ्वी आदि मण्डलों में पवन के प्रवेश और नि:सरण काल के ज्ञानादि से आगम का अनुमान लेकर गुरु कृपा से प्राप्त किये हुए पवित्र स्वरोदय ज्ञान को कहता हूँ।


सुर का उदय पिछानिए, अति थिरता चित्त धारता

 थी शुभाशुभ कीजिये, भावि वस्तु विचार ॥  ॥ 


नासिका के भीतर से जो श्वास निकलता है उसका नाम स्वर है। चित्त को अति स्थिर करके स्वर को पहचानना चाहिये और स्वर को पहचान कर भविष्य में होनहार के शुभाशुभ का विचार करना चाहिये।


नाड़ी तो तन में घनी, पिण चौबीस प्रधान ।

 ता में दस पुणि ताहु में, तीन अधिक करि जान ॥  ॥ 

इंगला पिंगला सुखमना, ये तीनों के नाम।

 भिन्न-भिन्न अब कहत हूँ, ता के गुण अरु धाम ॥  ॥


स्वर का सम्बन्ध नाड़ियों से है। यद्यपि शरीर में नाड़ियाँ बहुत हैं तथापि इनमें से चौबीस नाड़ियाँ प्रधान हैं और इन चौबीस नाड़ियों में से दस' नाड़ियाँ अति प्रधान हैं एवं उन दस नाड़ियों में से भी तीन नाड़ियाँ अतिशय प्रधान मानी हैं। इनके नाम इंगला, पिंगला और सुषमना हैं। इनके गुणों और स्थानों का वर्णन आगे करेंगे।


भृकुटी चक्र सुं होत है, स्वासा को परकास।

 बंकनाल के ढिग थई, नाभि करत निवास 



 नाभी थी फुनि संचरत, इंगला पिंगला धाम।

 दक्षिण दिश है पिंगला, इंगला नाड़ी धाम ॥  ॥


इन दोऊ के मध्य में, सुखमन नाड़ी होय ।

सुखमन के परकास में, सुर पुनि चालत दोय ॥  ॥

 दोनों भोहों के बीच में जो आज्ञाचक्र नाम का चक्र है वहाँ से श्वास का प्रकाश होता है तथा पिछली बंकनाल में से होकर नाभी में जाकर ठहरता है, वहाँ से फिर श्वास इंगला और पिंगला द्वारा निकलता है।


शरीर में मेरुदण्ड के दक्षिण (दाहिनी) दिशा की तरफ पिंगला (सूर्य) नाड़ी है तथा वाम (बायीं) तरफ इंगला (चन्द्र) नाड़ी है। इन दोनों नाड़ियों के मध्य में सुषुम्ना नाड़ी रहती है। सुषमन नाड़ी के प्रकाश से नाक के दोनों नथनों से स्वर (श्वास) चलता है।


डाबा सुर जब चलत है, चन्द्र उदय तब जान

जब सुर चालत जीमणो, होत तब भान ॥  ॥


इनमें से जब (इंगला नाड़ी द्वारा) बाँया (डाबा) स्वर चलता है तब चन्द्र का उदय जानना चाहिये तथा जब (पिंगला नाड़ी द्वारा) दाहिना (जीमना) स्वर चलता है तब सूर्य का उदय जानना चाहिये।




स्वरों के कार्य


सौम्य (शीतल और स्थिर) कार्यों को चन्द्र स्वर में करना शुभ है, क्रूर और चर कार्यों को सूर्य स्वर शुभ है। जब दोनों स्वर समान चलते हों उसे सुषमना स्वर कहते हैं। इस स्वर में प्रभु भजन और ध्यान के सिवाय अन्य कोई भी कार्य नहीं करना चाहिये, क्योंकि इस स्वर में किसी कार्य को करने से वह निष्फल होता है तथा उससे क्लेश भीउत्पन्न होता है। 

चन्द्र चलत कीजे सदा, थिर कारज सुरभाल ।

 चर कारज सूरज चलत, सिद्धि होय तत्काल ॥ ॥


इसलिये चन्द्र स्वर के चलते समय शीतल और स्थिर कार्यों को तथा सूर्य स्वर के चलते समय क्रूर और चर कार्यों को करना चाहिये। क्योंकि ऐसा करने से कार्य की सिद्धि तत्काल होती है।





बुधवार, 30 मार्च 2022

नाखून बताएं स्वभाव व चरित्र

 आपके नाखून आपका चरित्र बताते है।

नाखून स्वास्थ्य बताने में माहिर 


नख परिचय 


प्राच्य तथा पाश्चात्य विद्वानों ने जातक के हाथों के नखों (नाखून) की परीक्षा पर भी विशेष बल दिया है। नस्लों के द्वारा जातक के स्वास्थ्य, स्वभाव तथा चरित्र आदि के विषय में बहुत कुछ जाना जा सकता है। इस प्रकरण में नख परीक्षा के प्राच्य तथा पाश्चात्य सिद्धान्तों को क्रमशः प्रस्तुत किया जा रहा है।

प्राच्यमत- भारतीय विद्वानों ने नखों के 39 भेद माने हैं। यथा - (1) रक्तवर्ण, (2) ताम्रवर्ण, (3) प्रवालवर्ण, (4) वीर वधूटी वर्ण (5) श्वेत (6) पीतवर्ण (7) हरितवर्ण (8) नीलवर्ण (9) कृष्णवर्ण (10) तुष (भूसे जैसे) वर्ण, (11) विपर्न, (12) दीर्घ (13) सूक्ष्म, (14) प्रलंब, (15) तीक्ष्ण, (16) चतुःष्कोण, (17) बर्तुलाकार, (18) स्निग्ध, (19) रुक्ष, (20) निस्तेज (21) कान्तिहीन, (22) निर्मल (23) कच्छप पृष्ठ वत उन्नत (24) टेढ़े (25) फटे हुए (26) शिथिल (27) पतले (28) चौड़े (29) काँच जैसे चमकदार (30) स्थूल (31) चपटे (32) सीपाकृति (33) नीचे दबे हुए (34) लूपाकृति (35) श्वेत बिन्दु युक्त (36) आगन्तुक श्वेत बिन्दु युक्त (37) पुष्प युक्त (38) सुन्दर तथा (39) मिश्रित लक्षणों वाले।

इन विभिन्न प्रकार के नखों का प्रभाव निम्नानुसार बताया गया है

(1) बड़े (2) टेढ़े (3) रुखे (4) श्वेत वर्ण (5) मूल में चौकोर तथा दबे हुए सिरे वाले (6) निस्तेज एवं (7) कान्तिहीन नखों वाला जातक धनधान्य एवं सुखहीन होता है।

(8) जिनके नखों के ऊपर बिखरे हुए फूलों की भांति श्वेत रंग के दाग हों वे जातक सदाचार हीन होते हैं। (9) श्वेत रंग के नखों वाले श्रमजीवी तथा (10) भूसे जैसे रंग बाल एवं (11) विवणं नमी वाले परावलम्बी होते हैं।

(12) चपटे तथा (13) कटे नसों वाले धनहीन (14) काले नसों वाले महापापी, (15) लाल नसो वाले भस्वामी (16) टेढ़े नया वाले दुष्ट (17) पीले नली वाले दराचारी (18) काले नसों वाले रोगी (19) ताम्र वर्ण नखों वाले धनी (20) वीर बघटी के रंग जैसे नसी वाले राजा (21) मुंगे के रंग जैसे नस्लो वाले नृपतुल्य होते हैं एवं

(22) कांच जम नसों वाले तेजस्वी होते हैं।

(23) शिथिल नसो वाले दरिद्री (24) माटे (25) मप जम, तथा (26) लम्बे नवी वाले निर्धन (27) बतलाकार (28) कछुए की पीठ जैसे उन्नत (29) चिकने पानीदार तथा चीड एवं (30) अंगली के आध पर्व तक की लम्बाई के नखा वाल नृपतन्य तथा मत्री होते हैं। स्त्रियों के हाथों में ऐसे नल परम शुभ माने जाते हैं। (31) नीचे दबे हुए तथा सीप जैसे नसों वाले दरिद्री होते हैं। (32) श्वेत बिन्द यक्त नो वाल पुरुष दुःखी तथा स्त्रियां व्यभिचारिणी होती है। (33) जो श्वन बिन्द जन्मजात न हो, परन्तु किसी समय आकस्मिक रूप से उत्पन्न हो गये हो. उन्ह आगन्तक श्वेत बिन्द' कहा जाता है, ऐसे नल शुभ माने गये हैं।

(34) सरल, (.35) सुन्दर तथा (36) छोटे नल शुभ होते हैं। (37) निर्मल नमा वाले भाग्यशाली (38) विवर्ण तथा (39) बहुत छोटे नसों वाले दरिद्री होते हैं।

नवग्रह के रत्न

 रत्नों की जानकारी   यहां सिर्फ रत्नों के नाम बताएं गए है।  1. सूर्य ग्रह का रत्न मानिक्य व उपरत्न स्टार माणक, रतवा हकीक, तामडा,...