शनिवार, 4 दिसंबर 2021

रंगों का प्रभाव हमारे जीवन पर




रंगों के मनोवैज्ञानिक प्रभाव-हर रंग कुछ कहता है और मन तथा मस्तिष्क
पर अपना विशिष्ट प्रभाव डालता है। यह प्रभाव बार-बार या निरंतर रूप में पड़े तो
शरीर, कर्मों, जीवन, घर, स्वास्थ्य तथा भाग्य तक को प्रभावित करता है। अतः उसे
मामूली समझकर छोड़ देना भारी भूल है। (अन्य प्रभावों की चर्चा आगे करेंगे। यहां
मनोवैज्ञानिक प्रभावों की ही चर्चा संक्षेप में करेंगे। किन्तु यह चर्चा आगे के प्रभावों
की चर्चा का सशक्त आधार बनाएगी, अतः पाठकों को यह सम्पूर्ण प्रकरण बहुत
ध्यानपूर्वक पढ़ना उपयोगी होगा)। अतः रत्नों के प्रभाव की वैज्ञानिकता समझने के
लिए रंगों के इन तमाम गुणों को भली प्रकार समझना जरूरी है।

लाल रंग-उत्तेजना, उग्रता, क्रोध, हिंसा, ऊष्मा, उत्साह, शक्ति, आक्रामकता
और दबंगता का द्योतक है। यह सर्वाकर्षण का केन्द्रविन्दु भी है। अतः दृष्टा में जोश,
भूख, आवेग तथा ऊर्जा पैदा करता है और उत्तेजना को बढ़ाता है। यही कारण है
कि लाल वस्त्र पहनने वाले तथा लाल रंग पसन्द करने वाले लोग जोशीले, ऊर्जावान,
डॉमिनेटिंग, आत्मविश्वास से भरे हुए तथा सन्नद्ध प्रकार के होते हैं किंतु अशांत,
क्रोधी, आवेगी, अधीर और जल्दबाज भी। प्रायः इन्हें भूख अधिक लगती है. या ये
अधिक खाने वाले होते हैं, तो भी उनकी पाचन शक्ति उत्तम होती है अतः ये आलसी
न होकर बलवान / कर्मठ और फुर्तीले होते हैं। खाली बैठना इन्हें भाता नहीं है। जिन्हें
भूख कम लगती हो, ऐसे लोग यदि लाल पर्दे, गुलाबी दीवारों, लाल कालीन तथा लाल
फर्नीचर से सुसज्जित स्थान पर भोजन करें तो उनकी भूख बढ़ जाती है, और वे
अपेक्षाकृत अधिक खाते हैं। दुल्हन को विवाह समारोह में सबके आकर्षण का केन्द्र
(अति विशिष्ट) बनाने के लिए उसे लाल जोड़ा पहनाया जाता है। इससे दूल्हे की
प्रथम मिलन के लिए उत्तेजना तथा उत्साह भी बढ़ता है। शरीर में लाल रंग का
असंतुलन (कमी / वृद्धि) बहुत से रोग उत्पन्न करता है (प्रायः पित्त संबंधी) जो
रंग/ सूर्य चिकित्सा द्वारा उस रंग विशेष को संतुलित करके ठीक भी होते हैं।











पीला रंग-खुशी, प्रसन्नता, हर्ष, उल्लास, उमंग, समृद्धि, जीवन्तता जिन्दादिली,
आशा, प्रमोद, ऐश्वर्य, मस्ती तथा आनन्द / मौज का द्योतक है। यह दृष्टा में चैतन्यता,
जागृति, उत्साह/उमंग, आशा, प्रमोद व जीवेष्णा उत्पन्न करता है, तथा आलस्य,
प्रमाद, निराशा, शिथिलता आदि दूर करता है। यही कारण है कि राम, कृष्ण, विष्णु,
गणेश आदि देवताओं के वस्त्र उत्तरीय पीले रंग के दिखाए जाते हैं। पीले वस्त्रों को
अधिक पहनने वाले या पीला रंग अधिक पसन्द करने वाले लोग जीवन्त, प्रसन्नचित्त,
खुशमिजाज, विनोदी, अधिक चिंता में न पड़ने वाले, आशावान, हास्यप्रिय, प्रमुदित,
अपने में मस्त, आनन्द व उमंग से छलकते रहने वाले तथा मौज-मेला पसन्द करने
वाले होते हैं। किंतु लापरवाह, अगम्भीर, समय को खेलकूद मनोरंजन में ही अधिक
निकाल देने वाले तथा अस्थिर स्वभाव के भी होते हैं। प्रायः ये भोगवादी या अधिक भोगेच्छुक होते हैं और किसी एक कार्य को एकाग्रतापूर्वक लम्बे समय तक करने
का धैर्य उनमें नहीं होता। शीघ्र उकता जाते है, या परिवर्तन चाहते हैं। यदि आलसी,
निकम्मे तथा खाली पड़े रहने वाले लोगों को पीले वस्त्र, पीले पर्दे, पीली चादर, पीले
कालीन, क्रीम दीवारों तथा पीले फर्नीचर से सजे घर में बैठाया जाए तो वे अधिक
समय खाली नहीं पड़े रह सकते, उनका शरीर व दिमाग सक्रियता के लिए प्रेरित
होने लगता है। उनमें जोश, उमंग, उत्साह तथा आशा का संचार होने लगता है। शरीर
में पीले रंग के असंतुलन से बहुत से रोग उत्पन्न होते हैं। (प्रायः कफ संबंधी) जो
सूर्य रंग चिकित्सा द्वारा पीला रंग संतुलित कर दिए जाने पर ठीक भी होते हैं। (रंगों
के चिकित्सकीय प्रभावों में पाठक इनको संक्षेप में जान सकेंगे ) ।

नीला रंग-नीला रंग स्थायित्व प्रदान करने वाला रंग है। अतः एकान्त,
एकाग्रता, शिथिलता, विश्राम, प्रमाद, आलस्य, निद्रा, तन्द्रा, रति, गतिहीनता,
भारीपन, गहराई / गहनता, गम्भीरता, निष्क्रियता तथा विभोरता का द्योतक है। यह
दृष्टा में विश्रांति, ठहराव, रिलैक्सनैस, निश्चिंतता और अकर्मण्यता या धैर्य के गुणों
को उत्पन्न करता है। एकाकीपन या एकाग्रता को बढ़ाने वाला है। रसिकता के भावों
का उत्पादक है अथवा विलासिता/ आराम के भाव बढ़ाता है। नीले रंग को अधिक
पसंद करने वाले या नीला रंग अधिक पहनने वाले लोग प्रायः आरामतलब,
ऐश्वर्य-प्रिय, विलासी, कल्पनाशील, कलात्मक अभिरुचियों वाले, सौंदर्यप्रेमी, लालित्यपूर्ण,
रसिक, कामी तथा आत्मरमण करने वाले होते हैं। इनमें स्थायित्व होता है, जल्दबाजी,
उग्रता व अधीरता नहीं होती। सहिष्णु तथा धैर्यवान होते हैं, किंतु अधिक परिश्रमी
नहीं होते। लापरवाह, काम को टालने वाले, बिना प्रेरणा मूड के काम न करने वाले
होते हैं। शारीरिक श्रम की अपेक्षा मानसिक श्रम बेहतर कर पाते हैं। गम्भीर व शांत
स्वभाव के होते हैं। अभिमानी होते हैं किंतु क्रोधी नहीं होते। नीले रंग के असंतुलन
से शरीर में बहुत से रोग (विशेषतः वायु रोग या मानसिक रोग) उत्पन्न हो जाते हैं

जो सूर्य/रंग चिकित्सा द्वारा नीले रंग को संतुलित करने से ठीक भी हो जाते हैं।
नोट-मूल रंग यही तीन हैं। इनको क्रमशः रजोगुण, सतोगुण व तमोगुण से
जोड़ा जा सकता है। शरीर के त्रिदोषों/त्रिगुणों में ये क्रमशः अग्नि/ पित्त, जल / कफ
और वायु/वात का प्रतिनिधित्व करते हैं। इन मूल रंगों के साथ (जो प्राकृतिक हैं)
अप्राकृतिक रंगों में काले व सफेद का भी बहुत महत्व है।







काला रंग-उदासी, दुःख, मृत्यु, शोक, निराशा, मूर्च्छा/ अचेतना, निद्रा, घोर
आलस्य, शैथिलता, रहस्य, कलुष, भय, एकाकीपन, नीरवता, अंधकार, नकारात्मकता,
अवसाद, पीड़ा, दीनता, स्थूलता जड़त्व तथा अत्यंत भारीपन, या अत्यंत गहनता उनन्तता
का द्योतक है। काला रंग दृष्टा में भय, रहस्य, जुगुप्सा, जड़त्व, शिथिलता, विरक्ति
तथा उदासी के भाव उत्पन्न करता है। काला रंग अधिक पसंद करने वाले या काले वस्त्र अधिक पहनने वाले लोग, संकीर्ण स्वभाव के या एकाकी अनुभव करने वाले,
हीन भाव से ग्रस्त, किंतु सबसे भिन्न/पृथक दिखने की इच्छा वाले, परम्पराओं या
रीतियों से विरोध रखने वाले या जनमत के विरुद्ध चलने वाले, मनमानी करने वाले/
स्वेच्छाचारी, अपने मामलों में किसी की दखलंदाजी पसंद न करने वाले, हठी,
अहंकारी, नकारात्मक सोच वाले, अपना भेद सरलता से किसी को न देने वाले,
असुरक्षा की भावना वाले, कम परिश्रम करने वाले तथा अव्यवस्थित जीवन जीने वाले
होते हैं। इन्हें किसी काम को करने की कोई जल्दी नहीं होती। यद्यपि मानसिक
क्षमताएं अच्छी हो सकती हैं, किंतु सफल होने के लिए अधिक संघर्ष करना पड़ता
है या असफल रहते हैं। 

15 टिप्‍पणियां:

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  3. आप हमेशा ही ऐसे हमे अपने ज्ञान को समझाते रहना

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