रविवार, 31 अक्टूबर 2021

चंद्रमा का रत्न मोती

जाने मोती के प्रकार 


परिचय और प्रकार-मोती को संस्कृत में मुक्ता/मुक्तक कहा जाता है। यहूदी लोग इसे ‘गौहर' कहते हैं। अरबी में 'दुर्रा' तथा बांगला में पूती कहा जाता है। आंग्ल भाषा में उसे Pearl (पल) कहा जाता है। यह चन्द्रमा का प्रतिनिधि रत्न है। भारतीय मत से मोती 8 प्रकार का माना गया है। गजमुक्ता, सर्पमुक्ता, वंशमुक्ता, शूकरमुक्ता, मीनमुक्ता, मेघमुक्ता, सीपमुक्ता तथा आकाशमुक्ता। (शंखमुक्ता के नाम से भी मोती प्राप्त होता है, किंतु उसे सीपमुक्ता का ही प्रभेद माना जाता है। यद्यपि कुछ विद्वान शंखमुक्ता को अलग प्रकार में गिनते हैं। वे आकाशमुक्ता को मेघमुक्ता के अन्तर्गत मानते हैं। अतः मोती के कुल प्रकार 8 ही मान्य हैं। यह एक विलक्षण तथ्य है कि मोती की प्राप्ति चन्द्रमा को शत्रुओं में गिनने वाले ग्रहों के कारकों से होती है। जबकि मोती चंद्रमा का रत्न है। (मेघ, शूकर, गज, राहु के सर्प-शनि व राहु का, वंश, शंख, सीप, शुक्र के, आकाश गुरु का तथा मीन केतु का कारक / प्रतिनिधि हैं)। संभवतः उसका कारण यह है कि चंद्र के शत्रु ये ग्रह अपने कारकों के माध्यम से चन्द्र के तेज का शोषण कर लेते हैं जिसके परिणामस्वरूप उनमें मोती निर्मित होता है। यदि इस थ्योरी/ सम्भावना को सत्य मानें तो मोती और भी अधिक प्रबलता से चंद्र का प्रतिनिधि सिद्ध होता है। इन मोतियों की अपनी-अपनी विशेषताएं हैं।




1. गजमुक्ता-गजमुक्ता उन हाथियों के कुम्भस्थलों या दन्तकोषों में मिलता है जिनका जन्म सोमवार या रविवार को पुष्य नक्षत्र या श्रवण नक्षत्र के उत्तरायण काल में होता है। इन मोतियों को संसार के श्रेष्ठतम मोतियों में गिना जाता है। ये है स्निग्ध, सुडौल तथा अति तेजस्वी होते हैं। वर्ण शुभ्र श्वेत या धूसर भी होता है। इनके दर्शन मात्र से नेत्रों को शीतलता तथा मन को शांति प्राप्त होती है। इन मोतियों को बिना बिंधवाए अपने पास या पूजा में रखना चाहिए क्योंकि ये अत्यंत पवित्र व प्रभावशाली होते हैं। अंगूठी या लॉकेट आदि में (माला में नहीं बिंधवाए बिना) उन्हें धारण भी किया जा सकता है। इसको समस्त क्लेशों का नष्टकर्त्ता, अपार शांति एवं चारों पुरुषार्थो (धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष) का प्रदान करने वाला, कल्याणप्रद कहा गया है।

2. सर्पमुक्ता/नागमुक्ता-शास्त्रों के अनुसार वासुकि जाति के नागों में (जो सांपों की श्रेष्ठतम जाति मानी गई है) यह मोती उनके फनों में पाया जाता है। नाग की आयु बढ़ने के साथ-साथ इस मोती के आकार में वृद्धि होती है। यह तेजयुक्त और प्रभावशाली होता है तथा नीली आभायुक्त होता है। दुर्लभ है अतः कोई विरला ही अति भाग्यवान व्यक्ति उस मोती को प्राप्त कर पाता है। यह मोती सर्व मनोकामनाओं का पूर्ण करने वाला कहा गया है। कुछ विद्वान इसी को नागमणि कहते हैं। किंतु कुछ विद्वान इसे नागमणि से भिन्न मानते हैं। वर्तमान काल में उस मोती की उपलब्धता के प्रमाण नहीं मिलते।

3. शूकरमुक्ता-वाराह वर्ग में उत्पन्न सूअर के मस्तक में यह मोती प्राप्त होता है। युवा सूअर के मस्तिष्क में यह मोती अपने श्रेष्ठ आकार में होता है। इससे पूर्व व पश्चात क्षीण होता जाता है। कुछ विद्वानों के मत में यह युवा सूअर के मस्तक ही में पाया जाता है। यह हरी सी आभा वाला, वर्तुल, सुन्दर एवं चमकदार होता है। उसे धारण करने से वाक्शक्ति और स्मरण शक्ति मुखरित होती है। वाक्सिद्धि में सहायक होता है। कहा जाता है कि जो स्त्रियां केवल कन्याओं को ही जन्म देती हैं, वे यदि इस मोती को धारण करें तो उन्हें अवश्य पुत्र प्राप्त होता है।

4. मीनमुक्ता/मत्स्यमुक्ता- यह किसी-किसी मछली के पेट से प्राप्त होता है तथा आकार में गोल न होकर तिकोना सा एक ओर को Pointed सा (चने जैसा) होता है। उसकी चमक अपेक्षाकृत कम या अधिक हो सकती है किंतु रंग सदैव पीली सी आभा लिए होता है। इसको धारण करने से आरोग्य, आयु एवं स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है। विशेषतः क्षयरोग (Tob) के निवारणार्थ उसका प्रभाव अद्भुत माना गया है। अधिक चमकदार मोती को पानी के भीतर भी (नदी/ समुद्र आदि) ले जाया जाए तो प्रकाश सा प्रतीत होता है। यह प्राणों फेफड़ों की सामर्थ्य में वृद्धि करता है।

5. वंशमुक्ता- बांस के जंगलों में, जिन बांसों में यह मोती रहता है, वहां पुष्य नक्षत्र, श्रवण नक्षत्र तथा स्वाति नक्षत्र से एक दिन पूर्व से नक्षत्र के समाप्ति काल तक एक विशिष्ट प्रकार की ध्वनि गुंजित होने लगती है जिसे 'वेदध्वनि' कहा जाता है। इस ध्वनि से मोतीयुक्त बांस की पहचान हो जाती है। तब उस बांस को बीच से काटकर उसके भीतर से मोती निकाला जाता है। यह चिकना, स्निग्ध, गोल किंतु अल्पकांति वाला या चमकविहीन होता है। यह सौभाग्य, यश, एवं अटूट संपत्ति तथा ऐश्वर्य प्रदान करने वाला कहा गया है। किंतु यह सब बांसों में नहीं पाया जाता, किसी-किसी बांस में होता है।


. मेघमुक्ता व आकाशमुक्ता-(कुछ विद्वान इन्हें पृथक-पृथक मानते हैं। कुछ के अनुसार ये एक ही है, किंतु वर्तमान में अनुपलब्धता के कारण प्रमाणित रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता है, तथापि इनकी उत्पत्ति प्रायः समान ढंग से या समान माध्यमों से ही मानी गई है)। पुष्य नक्षत्र में हुई वर्षा में कभी आकाशमुक्ता भी गिरता है जिसको विद्युत की भांति चमकदार (रुपहला) तथा गोल बताया गया है। यह अति • सौभाग्यप्रद, तेजप्रद तथा अकूत संपत्ति का प्रदाता कहा गया है। रविवार को पुष्य/ श्रवण नक्षत्र में हुई वर्षा में मेघमुक्ता का गिरना माना गया है। इसे मेघ के समान कांति वाला (हल्का 'ग्रेईश') बताया जाता है। जिसे यह मोती प्राप्त हो जाए उसको कोई अभाव नहीं रहता। (हमारे विचार में इनको दिव्य मुक्ता मानना चाहिए। क्योंकि अनेकों विशिष्ट समय की वर्षाओं में यह एकाध ही गिरने की बात कही गई है। किंतु वर्तमान युग में ऐसा मोती सुनने देखने में नहीं आया है)।


7. शंखमुक्ता पांचजन्य नामक एक विशिष्ट शंख (जिसे भगवान कृष्ण बजाया करते थे) समुद्र में ज्वार-भाटे की उथल-पुथल के कारण यदा-कदा ऊपर आ जाता है। उसी प्रजाति के शंखों के भीतर से शंखमुक्ता की उत्पत्ति मानी गई है। इसकी रंगत समुद्र के जल की भांति हल्की फिरोजी हल्की आसमानी बताई गई है। यह सुडौल, सुंदर, तथा 3 रेखाओं से युक्त होता है, जो यज्ञोपवीत की भांति इस पर खिंची रहती हैं। यद्यपि यह कान्ति (चमक) से रहित होता है किंतु प्रभावशाली व शुभदायक होता है। आरोग्यता तथा स्थिर लक्ष्मी प्रदान कर सभी अभावों को दूर करता है। उसको भी बींधा जाना वर्जित है। पूजा में रखा जाता है, या शुचिता निर्वाह के साथ अपने पास रखा जाता है। या अंगूठी लॉकेट में धारण किया जा सकता है।


8. सीपमुक्ता- यही मोती साधारणतः माला, अंगूठी आदि में धारण किया जाता है और सर्वाधिक पाया जाता है। इन्हीं मोतियों की बींधे जाने का विधान अनुमति है। स्वाति नक्षत्र में आकाश से गिरी ओस / जल की बूंद जब किसी सीप के मुख में गिरती है तो उस सीप के गर्भ में कालांतर में मोती के रूप में परिणित होती है। यही मोती चंद्र का विशेष प्रचलित प्रतिनिधि रत्न है। यह लम्बा, गोल, वर्तुल, चपटा, अंडाकार आदि कई आकारों में प्राप्त होता है। कभी-कभी जुड़वां रूप में भी दो या अधिक मोती सॉश्लष्ट मिलते हैं। इनका रंग दूध की भांति सफेद या 'क्रीमिश' या 'गंदुमी' होता है। विश्व के सभी समुद्रों में मोती पाए जाते हैं किंतु वसरा की खाड़ी में पाए जाने वाले मोती सर्वोत्तम माने गए हैं। इसे धारण करने से चित्त व मस्तिष्क में शांति आती है तथा धनादि के साथ स्वास्थ्य भी प्राप्त होता है। (मेघमुक्ता व आकाशमुक्ता को पृथक मानने वाले विद्वान शंखमुक्ता और सीपमुक्ता को एक श्रेणी में गिनते हैं। यह पहले भी कह आए हैं। अतः प्राकृत मोतियों के 8 प्रकार ही मान्य हैं)।

जैन साध्वी महाप्रज्ञ

मोती का महत्व जानने के लिए अगली पोस्ट पढ़ें।

12 टिप्‍पणियां:

  1. मोती का बहुत सुंदर वर्णन महाराज जी

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  2. आपकी हर पोस्ट बार बार पढ़ने को में करता है।

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