१) वास्तु पुरुष की जन्म कथा:
वास्तु शास्त्र के सभी नियम एक काल्पनिक वास्तु पुरुष की परिकल्पना के इर्द-गिर्द ही घूमते हैं। वास्तुशास्त्र में वास्तु पुरुष को एक वास्तविक पुरुष के रूप में परिभाषित किया गया है। जिस प्रकार किसी भी मनुष्य के शरीर के संवेदनशील अंग या मर्म स्थान होते हैं ठीक उसी प्रकार वास्तु पुरुष के सभी संवेदनशील अंग एवं मर्मस्थान होते हैं।
वास्तु शास्त्र में वास्तु पुरुष का बार-बार उल्लेख किया जाता है। इस लेख में हम वास्तु पुरुष का जन्म व भवन से उसके संबंध के विषय में विस्तार से जानेंगे। यदि हमें वास्तु पुरुष के महत्व को समझना है तो उसकी जन्म कथा के विषय में जानना अत्यंत आवश्यक है। वास्तु
पुरुष की उत्पत्ति के विषय में लगभग एक दूसरे से मिलती जुलती कई कथाएँ है। परन्तु यहाँ हम ऐसी दो कथाओं का वर्णन करने जा रहे हैं
जो कि ज्यादा प्रचलित हैं। ये दो कथाएँ वास्तु पुरुष की उत्पत्ति के विषय में विस्तार से जानकारी देती हैं।
त्रेता युग में एक विशालकाय व अति बलशाली महाभूत का जन्म हुआ। जिसने अपने विशालकाय व भारी भरकम शरीर से संपूर्ण पृथ्वी को ढॉप लिया। इसके कारण पृथ्वी का अस्तित्व ही खतरे में पड़ गया। इस संकट से बचने हेतु सभी देवतागण एवं देवराज इंद्र आदि भयभीत होकर श्री ब्रह्माजी की शरण में चले गए और पृथ्वी पर आए इस संकट के विषय में उन्हें विस्तार से बताया कि किस प्रकार उस विशालकाय राक्षस ने पूरी पृथ्वी को अपने विशालकाय शरीर से आच्छादित कर दिया है जिसके परिणाम स्वरूप पृथ्वी का अस्तित्व ही खतरे में पड़ गया है। यदि पृथ्वी के बचाव हेतु कोई उपाय न किया गया तो समस्त सृष्टि का अंत हो सकता है। इस बात की विस्ता जानकारी श्री ब्रह्माजी को दी गई और उनसे इसके बचाव हेतु कोई उपाय या सुझाव बताने की प्रार्थना की।
श्री ब्रह्माजी को देवताओं द्वारा मिली जानकारी से पृथ्वी पर आए इस गंभीर कट का पता चला तो उन्होंने तुरन्त समस्त देवतागण को सामूहिक रूप से महाभूत देवशक्ति का प्रयोग करके उसे उठाकर मुंह के बल उल्टा पटक देने का सुझाव दिया सभी देवतागण में ब्रह्मा जी की बात मानी और ठीक उसी प्रकार उस महाभूत के साथ किया। ऐसा करने से उस महाभूत का सारा प्रभाव खत्म हो गया। वह शक्तिशाली होते हुए भी दुर्बल एवं कमजोर हो गया। प्रभावहीन और शक्तिहीन होने के कारण उसने ब्रह्माजी की प्रार्थना की और उनको अपनी सारी व्यथा सुनाई। उसने निवेदन किया कि मैं जन्म से ही विशालकाय हूँ इसमें मेरा कोई दोष नहीं है और मुझे सभी देवताओं ने भूमि पर मुंह के बल उल्टा पटक दिया है। इसके कारण मेरा बड़ा अपमान हुआ है। साथ ही सभी देवतागण मेरे ऊपर बहुत अत्याचार करते हैं। मेरा जीवन काफी कष्टपूर्ण हो गया है और साथ ही मेरा अस्तित्व तो समाप्त प्रायः हो चुका है। कृपया आप मेरा उद्धार करो इससे ब्रह्माजी दयाभाव दिखाते हुए उस पर प्रसन्न हो गए और उस महाभूत का वास्तु पुरुष के रूप से नामकरण किया फिर उन्होंने उसे वरदान स्वरूप आशीर्वाद दिया कि किसी भी भवन, शहर नगर निर्माण से पूर्व हर व्यक्ति पहले तुम्हारी पूजा करेगा व तुम्हारा मान-सम्मान करेगा तभी उसे सुखों की प्राप्ति होगी अन्यथा वह स्वयं मृत्यु, दरिद्रता, आरोग्य हानि एवं महा-दुखों से त्रस्त रहेगा। उसको जीवन भर किसी भी प्रकार का सुख नहीं मिलेगा। ब्रह्माजी का आशीर्वाद मिलने से वह प्रसन्न हो गया और उसने भी सभी के कल्याण हेतु उस ब्रह्मांड में अपने अस्तित्व को अंगीकार किया। तभी से ऐसा माना जाता है कि हर भवन,शहर व नगर में वास्तु पुरुष का अदृश्य स्थिति में निवास होता है। उस वास्तु पुरुष पर जब देवताओं ने अपनी देवशक्ति के प्रयोग से उसे उठाकर अधे मुख गिराया था तब उसका सिर पूर्वोत्तर के ईशान्य कोण में, पाँव दक्षिण-पश्चिम के नैऋत्य कोण में एवं दायीं कुहनी दक्षिण पूर्व के आग्नेय कोण में तथा बाई कुहनी उत्तर पश्चिम के वायव्य कोण में स्थापित हुई थी। अधोमुखी होने के कारण उसका मुख नीचे भूमि की ओर व पीठ ऊपर आकाश की ओर हुई थी। इस प्रकार की शरीर रचना के साथ उनका हर एक भवन में निवास होता है ऐसा शास्त्रों के अनुसार माना जाता है।
वास्तु पुरुष के जन्म के विषय में दूसरी कथा जो कि हमारे प्राचीन ग्रंथ मत्स्य पुराण में मिलती है वह भी काफी प्रचलित है।
कथा नं. २: बहुत समय पूर्व अंधक नाम के राक्षस ने अपने कुकर्मों से इस पूरी धरती को प्रताड़ित किया था। इस राक्षस के डर का साया पूरी धरती पर छाया हुआ था। इस राक्षस के विनाश हेतु भगवान शिवजी ने उससे युद्ध करने का फैसला किया। भगवान शिवजी तथा राक्षस अंधक में घनघोर युद्ध हुआ। उस युद्ध में राक्षस का अंत हो गया। परन्तु जब भगवान शिवजी राक्षस के साथ युद्ध कर रहे थे तब उनके शरीर से काफी पसीना निकल रहा था। उस पसीने की कुछ बूंदे धरती पर पड़ने से एक पुरुष ने जन्म लिया। वह पुरुष दिखने में एकदम भयंकर एवं क्रूर नजर आ रहा था। जन्म से ही वह भूख के मारे व्याकुल रहता था। वह हमेशा भूख के चलते खाने के लिए तड़पता रहता था। उसे हमेशा कुछ न कुछ खाने को चाहिए था। उसकी खाने की व्याकुलता इतनी थी कि वह कितना भी खाता था तो भी उसकी भूख नहीं मिटती थी।
इसके उपाय हेतु उसने भगवान शिवजी की कठोर साधना करने का फैसला किया। उसकी कठोर साधना से भगवान शिवजी उस पर प्रसन्न हो गए और उसे वरदान स्वरूप आशीर्वाद देने की इच्छा जताई तो उसने भगवान शिवजी से आशीर्वाद के रूप में तीनों लोक (पाताल लोक, पृथ्वी लोक एवं स्वर्ग लोक) को खाने की अनुमति माँग ली। भगवान शिवजी तो ठहरे भोले नाथ उन्हें क्या पता था कि आशीर्वाद के तौर पर वह उनसे कुछ इस प्रकार की इच्छा करेगा। परन्तु वह जो कुछ भी आशीर्वाद के रूप में मांगेगा उसे पूरा कर देने का वचन उन्होंने पहले से ही उसे दिया हुआ था। अब भगवान शिव अपने वचन से मुकर नहीं सकते थे व उसे नकार भी नहीं सकते थे। उनके पास अब तथास्तु बोलने के सिवा दूसरा कोई विकल्प नहीं था।
भगवान शिवजी से मिले आशीर्वाद प्राप्ति से अंधक बहुत प्रसन्न हो गया। परिणाम स्वरूप उसने पहले भूलोक को खाना शुरू कर दिया तो सभी देवता गण भयभीत होकर ब्रह्माजी के पास चले गए। उन्होंने ब्रह्माजी से निवेदन किया कि वे सभी लोगों की इस भयंकर राक्षस से रक्षा करें और इस धरती को भी बचाएं। तो ब्रह्माजी ने उन्हें सुझाव दिया की वह अपनी दिव्यशक्तियों का उपयोग करके उसे पकड़ कर उल्टा करें और देवतागण उसके शरीर पर चढ़ जाएं। देवतागण ने उनकी बात मान ली और उसके साथ इसी प्रकार का व्यवहार किया जिसके कारण वह महाकाय महाभूत बहुत व्याकुल हो उठा। इस पर उसने ब्रह्माजी से प्रार्थना की कि वह कब तक ऐसा अधोमुखी कैदी की तरह रहेगा। मैं क्या खाऊँगा? मेरी तो भूख के मारे जान जा रही है। साथ ही मेरे ऊपर सभी देवता गण बहुत अत्याचार करते हैं तथा मुझे पीड़ा देते हैं। कृपया मुझपर आप अपनी कृपादृष्टि बनाएं व इस संकट से बचाएं। मेरा उद्धार करें प्रभो
तो ब्रह्माजी ने उसकी प्रार्थना को स्वीकार करते हुए उसे वरदान दिया कि आज से तुम वास्तु पुरुष के नाम से जाने जाओगे और अधोमुखी स्थिति में तुम्हारा निवास हर भवन व हर भूखंड में बना रहेगा। भवन निर्माण करते समय जो तुम्हारी पूजा करेगा, तुम्हारा उचित मान-सम्मान करेगा उसे तुम्हारे आशीर्वाद स्वरूप सभी प्रकार के सुखों की प्राप्ति होगी। परन्तु जो तुम्हारा तिरस्कार करेगा या तुम्हारा अपमान करेगा उसे तुम्हारे क्रोध का सामना करना पड़ेगा। तभी से ऐसा माना जाता है कि सभी भवनों में वास्तु पुरुष का निवास होता है।
Very nice sadhvi behan
जवाब देंहटाएंNice story maharaji
जवाब देंहटाएंNice explain maha pragya ji
जवाब देंहटाएंBhut Bdiya Didi
जवाब देंहटाएं👌
जवाब देंहटाएंVery nice behan maharaji
जवाब देंहटाएंअत्यंत रोचक जानकारी.
जवाब देंहटाएंAwsome didi ji
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