सोमवार, 8 नवंबर 2021

Part 2 वास्तु शास्त्र का स्वास्थ्य से संबंध



 दक्षिण पूर्व का आग्नेय कोण 

 दक्षिण-पूर्व का आग्नेय कोण: महत्व

वास्तुशास्त्र की शब्दावली में किसी भी भूखंड की पूर्व दिशा के मध्य से लेकर दक्षिण दिशा के मध्य का भाग आग्नेय कोण कहलाता है। यह हमारे भवन का सबसे गर्म कोण होता है। प्राकृतिक रूप से ही यह कोण भवन के अन्य कोणों की तुलना में अधिक गर्म होता है। इसके इसी गुण धर्म को देखते हुए यहाँ पर बेडरुम न बनकर किचन को बनना चाहिए।


 ३) दक्षिण-पश्चिम का नैऋत्य कोण या उपदिशा:


वास्तुशास्त्र के अनुसार किसी भी भवन की पश्चिम दिशा के मध्य से लेकर दक्षिण दिशा के मध्य का भाग नैऋत्य कोण या नैरूत कोण के नाम से जाना जाता है। इस कोण को बुजुर्ग व्यक्तियों का स्थान भी कहा जा सकता है। यह कोण सभी बुजुर्ग लोगों के लिए अत्यंत लाभदायक होता है। प्रकृति के नियमों के अनुसार जैसे जैसे मनुष्य की उम्र बढ़ती जाती है वैसे ही उन्हें अनेकों छोटी-मोटी बीमारियों का सामना करना पड़ता है। इसमें जोड़ों का दर्द, आर्थराइटिस, कैल्शियम की कमी, पाचन संबंधी बीमारियां, शरीर में कमजोरी, थकावट आदि हो सकते हैं। इन सब पर काबू पाने या उसके प्रभाव को कम करने हेतु भवन की दक्षिण-पश्चिम की नैऋत्य दिशा में बने कमरे में रहना चाहिए। यहाँ पर रहने से काफी हद तक ऐसी बिमारियों को नियंत्रित किया जा सकता है।

इस कोण की विशेषता यह होती है कि इस स्थान पर पूर्वोत्तर से आने वाली सभी सकारात्मक ऊर्जा का ठहराव लंबे समय तक होता है। परिणाम स्वरूप शरीर की कोशिकाओं एवं स्नायुओं को आवश्यक सकारात्मक ऊर्जा का लाभ यहाँ पर रहने से मिलता है। दोपहर की धूप के प्रभाव के कारण यहां पर शरीर को आवश्यक कैल्शियम व फॉस्फोरस भी प्रर्याप्त में मिलता है जिससे कि हड्डियों को शक्ति मिलती है साथ ही शारीरिक कमजोरी को भी दूर किया जा सकता है। इसके इसी महत्व को समझते हुए वास्तुशास्त्र सलाह देता है कि घर के सभी बड़े सदस्य जैसे की नाना-नानी, दादा दादी, माता-पिता आदि को हमेशा दक्षिण-पश्चिम की नैऋत्य दिशा में बने कमरे में रहना चाहिए। यह उनके शारीरिक तथा मानसिक स्वास्थ्य के लिए अत्यंत उपयुक्त होता है। घर के बड़े बुजुर्ग यदि स्वस्थ रहेंगे तभी वे परिवार के हित में कोई अच्छा निर्णय ले सकेंगे जिससे कि पूरे परिवार को लाभ मिलेगा।



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