शुक्रवार, 10 दिसंबर 2021

नटखट हाथ से जाने स्वभाव

 दार्शनिक अथवा नटखट हाथ 


'दार्शनिक' अथवा 'नटखट' हाथ

इस श्रेणी के हाथों की हथेली लम्बी होती है। सम्पूर्ण हाथ की बनावट लम्बी तथा नुकीली होती है। अँगुलियाँ लम्बी होने के साथ ही कुछ टेढ़ी-सी भी होती हैं। उनकी गाँठे उठी रहती हैं तथा नाखून भी लम्बे आकार के होते हैं। ऐसा हाथ एक ओर को कुछ झुका-सा रहता है तथा उस पर रेखाएं अधिक गहरी होती हैं। अँगलियों के पृष्ठ भाग पर तीसरे पर्व पर रोम (केश) भी रहते हैं।

ऐसे हाथ वाले जातक उच्च श्रेणी के विद्वान, विचारक, बुद्धिजीवी, अन्तमंत्री चित्तवृत्ति वाले अत्यन्त धैर्यवान, सहिष्ण, मितभाषी, मधुरभाषी, प्रभावशाली, ज्ञान-पिपासु, दार्शनिक, आध्यात्म-चिन्तक, सद्गुणी, एकान्तप्रिय, कलाकार, साहित्यकार, धर्मात्मा, स्वतन्त्र विचारक, प्रतिभावान्, तार्किक, दयालु, धैर्यवान, परोपकारी, शान्त, आश्रयदाता, अनुभवी, शास्त्रज्ञ, उदार प्रकृति, निर्भय, सत्यवादी, स्नेही, कृपालु, सच्चरित्र, आदर्श प्रेमी, स्वाभिमानी, सबके मित्र तथा सदाचारी होते हैं। इनमें कृपणता लेशमात्र भी नहीं पाई जाती। यदि इनके पास धन हो तो ये उसे मुक्तहस्त कर धर्मशाला, चिकित्सालय आदि के निर्माण तथा परोपकार के कार्यों में खर्च करते हैं। स्वयं कष्ट सहकर भी ये दूसरों को सुख पहुँचाने के इच्छुक रहते हैं। प्रमाण एवं तर्क के बिना ये किसी भी बात पर विश्वास नहीं कर पाते। यदि इनसे कोई जोर-जबर्दस्ती की जाय तो ये बने हुये काम को स्वयं ही बिगाड़ देने में भी नहीं चूकते। इनकी विचारबुद्धि विचरूण होती है। भय अथवा धौंस दिखाकर इनसे कोई काम नहीं कराया जा सकता।

इन लोगों का दाम्पत्य जीवन प्रायः सुखमय नहीं होता। यदि इनका जीवन साथी भी ऐसे ही हाथ वाला न हुआ तो उन दोनों के विचारों में कभी पटरी नही बैठती, जिसके कारण गृहस्थ जीवन की शान्ति समाप्त हो जाती है।

यदि ऐसे हाथ की अंगुलियों में गाँठे हों तो 'विचारक प्रवृत्ति' की अधिकता पाई जाती है। यदि अँगुलियों के अग्रभाग कुछ चौकोर अथवा नुकीले हों तो आत्मिक-स्फूर्ति अधिक रहती है। अंगुलियों का नुकीला होना आत्मत्याग की भावना को प्रकट करता है। यदि हथेली वर्गाकार हो तथा केवल अँगुलियाँ गठीली हों तो ऐसे व्यक्ति के जीवन में व्यावहारिकता का समावेश भी पाया जाता है।

रविवार, 5 दिसंबर 2021

हाथ का प्रकार, चमसाकार हाथ का परिचय

 चमसकार हाथ वाले जातक का स्वभाव जाने 

'चमसाकार' अथवा 'कर्मठ' हाथ

इस श्रेणी के हाथ कुछ अस्त-व्यस्त तथा कुरूप से दिखाई देते हैं। हथेली की गद्दिया अधिक मांसल होती हैं। इनकी अँगलियों के अग्रभाग औषध-मिलाने की चम्मच की भांति फैले रहते हैं, तथा हथेली भी फैली हुई सी प्रतीत होती है, अतः इस श्रेणी के हाथ को कुछ   लोग 'चमचाकार हाथ' भी कहते हैं। सामान्यतः पूर्ववर्णित 'वर्गाकार' तथा 'चमसाकार' हाथों की बनावट एक जैसी होती है, परन्तु अँगुलियों की बनावट का पूर्वकथित स्वरूप ही इन्हें 'वर्गाकार' हाथ की श्रेणी से अलग करता है। इस श्रेणी के हाथ की अँगुलियाँ प्रायः लम्बी तथा पुष्ट होती हैं। इस श्रेणी का हाथ यदि कठोर तथा मजबूत हो तो वह व्यक्ति अधिक जोशीला तथा शीघ्र उत्तेजित हो जाने वाला होता है। मन पर नियन्त्रण कर पाना उसके लिए कठिन रहता है। इसके विपरीत यदि हाथ मुलायम, मांसल तथा ढीलापन लिये ही तो जातक अस्थिर एवं चिड़चिड़े स्वभाव का होता है। यदि इन दोनों के बीच की श्रेणी का हाथ हो तो जातक कठिन परिश्रमी, उत्साही, आत्मनिर्भर तथा अन्वेषी प्रकृति का होता है और वह अपने नवीन आविष्कारों द्वारा लोक कल्याण भी करता है। ऐसे लोग समाज कल्याण के कार्यों में बढ़कर भाग लेते हैं तथा हर समय कार्य-रत बने रह कर अपनी मौलिकता तथा स्वतन्त्र प्रतिभा को उजगार करते रहते हैं। कर्मठता इनका विशेष गुण होता है तथा उसी के बल पर ये धन, सम्मान तथा यश भी अर्जित करते हैं। यदि इनकी हथेली अँगुलियों के मूलभाग के समीप अधिक फैली हो तो ये अपनी आविष्कारक प्रवृत्ति को व्यावहारिकता का रूप देते तथा आविष्कार के क्षेत्र में नया कीर्तिमान स्थापित करते हैं। यदि हथेली मणिबन्ध के समीप अधिक फैली हो तो ऐसे वैचारिक अथवा मानसिक क्षेत्र में अपनी बुद्धि का विशेष उपयोग करते हैं तथा ऐसे अन्वेषण के कार्य करते हैं, जिनसे आर्थिक लाभ चाहे न हो, परन्तु मानसिक सन्तोष अवश्य प्राप्त होता है। ऐसे लोग यश तथा धनोपार्जन के क्षेत्र में प्रायः पिछड़े रह जाते हैं।


शनिवार, 4 दिसंबर 2021

रंगों का प्रभाव हमारे जीवन पर




रंगों के मनोवैज्ञानिक प्रभाव-हर रंग कुछ कहता है और मन तथा मस्तिष्क
पर अपना विशिष्ट प्रभाव डालता है। यह प्रभाव बार-बार या निरंतर रूप में पड़े तो
शरीर, कर्मों, जीवन, घर, स्वास्थ्य तथा भाग्य तक को प्रभावित करता है। अतः उसे
मामूली समझकर छोड़ देना भारी भूल है। (अन्य प्रभावों की चर्चा आगे करेंगे। यहां
मनोवैज्ञानिक प्रभावों की ही चर्चा संक्षेप में करेंगे। किन्तु यह चर्चा आगे के प्रभावों
की चर्चा का सशक्त आधार बनाएगी, अतः पाठकों को यह सम्पूर्ण प्रकरण बहुत
ध्यानपूर्वक पढ़ना उपयोगी होगा)। अतः रत्नों के प्रभाव की वैज्ञानिकता समझने के
लिए रंगों के इन तमाम गुणों को भली प्रकार समझना जरूरी है।

लाल रंग-उत्तेजना, उग्रता, क्रोध, हिंसा, ऊष्मा, उत्साह, शक्ति, आक्रामकता
और दबंगता का द्योतक है। यह सर्वाकर्षण का केन्द्रविन्दु भी है। अतः दृष्टा में जोश,
भूख, आवेग तथा ऊर्जा पैदा करता है और उत्तेजना को बढ़ाता है। यही कारण है
कि लाल वस्त्र पहनने वाले तथा लाल रंग पसन्द करने वाले लोग जोशीले, ऊर्जावान,
डॉमिनेटिंग, आत्मविश्वास से भरे हुए तथा सन्नद्ध प्रकार के होते हैं किंतु अशांत,
क्रोधी, आवेगी, अधीर और जल्दबाज भी। प्रायः इन्हें भूख अधिक लगती है. या ये
अधिक खाने वाले होते हैं, तो भी उनकी पाचन शक्ति उत्तम होती है अतः ये आलसी
न होकर बलवान / कर्मठ और फुर्तीले होते हैं। खाली बैठना इन्हें भाता नहीं है। जिन्हें
भूख कम लगती हो, ऐसे लोग यदि लाल पर्दे, गुलाबी दीवारों, लाल कालीन तथा लाल
फर्नीचर से सुसज्जित स्थान पर भोजन करें तो उनकी भूख बढ़ जाती है, और वे
अपेक्षाकृत अधिक खाते हैं। दुल्हन को विवाह समारोह में सबके आकर्षण का केन्द्र
(अति विशिष्ट) बनाने के लिए उसे लाल जोड़ा पहनाया जाता है। इससे दूल्हे की
प्रथम मिलन के लिए उत्तेजना तथा उत्साह भी बढ़ता है। शरीर में लाल रंग का
असंतुलन (कमी / वृद्धि) बहुत से रोग उत्पन्न करता है (प्रायः पित्त संबंधी) जो
रंग/ सूर्य चिकित्सा द्वारा उस रंग विशेष को संतुलित करके ठीक भी होते हैं।











पीला रंग-खुशी, प्रसन्नता, हर्ष, उल्लास, उमंग, समृद्धि, जीवन्तता जिन्दादिली,
आशा, प्रमोद, ऐश्वर्य, मस्ती तथा आनन्द / मौज का द्योतक है। यह दृष्टा में चैतन्यता,
जागृति, उत्साह/उमंग, आशा, प्रमोद व जीवेष्णा उत्पन्न करता है, तथा आलस्य,
प्रमाद, निराशा, शिथिलता आदि दूर करता है। यही कारण है कि राम, कृष्ण, विष्णु,
गणेश आदि देवताओं के वस्त्र उत्तरीय पीले रंग के दिखाए जाते हैं। पीले वस्त्रों को
अधिक पहनने वाले या पीला रंग अधिक पसन्द करने वाले लोग जीवन्त, प्रसन्नचित्त,
खुशमिजाज, विनोदी, अधिक चिंता में न पड़ने वाले, आशावान, हास्यप्रिय, प्रमुदित,
अपने में मस्त, आनन्द व उमंग से छलकते रहने वाले तथा मौज-मेला पसन्द करने
वाले होते हैं। किंतु लापरवाह, अगम्भीर, समय को खेलकूद मनोरंजन में ही अधिक
निकाल देने वाले तथा अस्थिर स्वभाव के भी होते हैं। प्रायः ये भोगवादी या अधिक भोगेच्छुक होते हैं और किसी एक कार्य को एकाग्रतापूर्वक लम्बे समय तक करने
का धैर्य उनमें नहीं होता। शीघ्र उकता जाते है, या परिवर्तन चाहते हैं। यदि आलसी,
निकम्मे तथा खाली पड़े रहने वाले लोगों को पीले वस्त्र, पीले पर्दे, पीली चादर, पीले
कालीन, क्रीम दीवारों तथा पीले फर्नीचर से सजे घर में बैठाया जाए तो वे अधिक
समय खाली नहीं पड़े रह सकते, उनका शरीर व दिमाग सक्रियता के लिए प्रेरित
होने लगता है। उनमें जोश, उमंग, उत्साह तथा आशा का संचार होने लगता है। शरीर
में पीले रंग के असंतुलन से बहुत से रोग उत्पन्न होते हैं। (प्रायः कफ संबंधी) जो
सूर्य रंग चिकित्सा द्वारा पीला रंग संतुलित कर दिए जाने पर ठीक भी होते हैं। (रंगों
के चिकित्सकीय प्रभावों में पाठक इनको संक्षेप में जान सकेंगे ) ।

नीला रंग-नीला रंग स्थायित्व प्रदान करने वाला रंग है। अतः एकान्त,
एकाग्रता, शिथिलता, विश्राम, प्रमाद, आलस्य, निद्रा, तन्द्रा, रति, गतिहीनता,
भारीपन, गहराई / गहनता, गम्भीरता, निष्क्रियता तथा विभोरता का द्योतक है। यह
दृष्टा में विश्रांति, ठहराव, रिलैक्सनैस, निश्चिंतता और अकर्मण्यता या धैर्य के गुणों
को उत्पन्न करता है। एकाकीपन या एकाग्रता को बढ़ाने वाला है। रसिकता के भावों
का उत्पादक है अथवा विलासिता/ आराम के भाव बढ़ाता है। नीले रंग को अधिक
पसंद करने वाले या नीला रंग अधिक पहनने वाले लोग प्रायः आरामतलब,
ऐश्वर्य-प्रिय, विलासी, कल्पनाशील, कलात्मक अभिरुचियों वाले, सौंदर्यप्रेमी, लालित्यपूर्ण,
रसिक, कामी तथा आत्मरमण करने वाले होते हैं। इनमें स्थायित्व होता है, जल्दबाजी,
उग्रता व अधीरता नहीं होती। सहिष्णु तथा धैर्यवान होते हैं, किंतु अधिक परिश्रमी
नहीं होते। लापरवाह, काम को टालने वाले, बिना प्रेरणा मूड के काम न करने वाले
होते हैं। शारीरिक श्रम की अपेक्षा मानसिक श्रम बेहतर कर पाते हैं। गम्भीर व शांत
स्वभाव के होते हैं। अभिमानी होते हैं किंतु क्रोधी नहीं होते। नीले रंग के असंतुलन
से शरीर में बहुत से रोग (विशेषतः वायु रोग या मानसिक रोग) उत्पन्न हो जाते हैं

जो सूर्य/रंग चिकित्सा द्वारा नीले रंग को संतुलित करने से ठीक भी हो जाते हैं।
नोट-मूल रंग यही तीन हैं। इनको क्रमशः रजोगुण, सतोगुण व तमोगुण से
जोड़ा जा सकता है। शरीर के त्रिदोषों/त्रिगुणों में ये क्रमशः अग्नि/ पित्त, जल / कफ
और वायु/वात का प्रतिनिधित्व करते हैं। इन मूल रंगों के साथ (जो प्राकृतिक हैं)
अप्राकृतिक रंगों में काले व सफेद का भी बहुत महत्व है।







काला रंग-उदासी, दुःख, मृत्यु, शोक, निराशा, मूर्च्छा/ अचेतना, निद्रा, घोर
आलस्य, शैथिलता, रहस्य, कलुष, भय, एकाकीपन, नीरवता, अंधकार, नकारात्मकता,
अवसाद, पीड़ा, दीनता, स्थूलता जड़त्व तथा अत्यंत भारीपन, या अत्यंत गहनता उनन्तता
का द्योतक है। काला रंग दृष्टा में भय, रहस्य, जुगुप्सा, जड़त्व, शिथिलता, विरक्ति
तथा उदासी के भाव उत्पन्न करता है। काला रंग अधिक पसंद करने वाले या काले वस्त्र अधिक पहनने वाले लोग, संकीर्ण स्वभाव के या एकाकी अनुभव करने वाले,
हीन भाव से ग्रस्त, किंतु सबसे भिन्न/पृथक दिखने की इच्छा वाले, परम्पराओं या
रीतियों से विरोध रखने वाले या जनमत के विरुद्ध चलने वाले, मनमानी करने वाले/
स्वेच्छाचारी, अपने मामलों में किसी की दखलंदाजी पसंद न करने वाले, हठी,
अहंकारी, नकारात्मक सोच वाले, अपना भेद सरलता से किसी को न देने वाले,
असुरक्षा की भावना वाले, कम परिश्रम करने वाले तथा अव्यवस्थित जीवन जीने वाले
होते हैं। इन्हें किसी काम को करने की कोई जल्दी नहीं होती। यद्यपि मानसिक
क्षमताएं अच्छी हो सकती हैं, किंतु सफल होने के लिए अधिक संघर्ष करना पड़ता
है या असफल रहते हैं। 

part 2 रंगो का जीवन पर प्रभाव

सफेद रंग-सफेद रंग शांति, शुद्धता, पवित्रता, सकारात्मकता, आशा,
मासूमियत, शुचिता, हल्कापन फ्रेशनेस, ताजगी, निर्विकारता, सौभ्यता, प्रकाश, उदारता,
स्वच्छता, निष्कपटता, अक्षुब्धता, विशालता/उदारता, जागृति, सेवा, सादगी, सद्भावना,
ममता, चैतन्यता, निर्भयता और निश्चिंतता/ आनन्द का द्योतक है। यह दृष्टा में
शुद्धता, शांति, सद्भावना पवित्रता और हल्केपन के भाव उत्पन्न करता है। जो लोग
सफेद रंग अधिक पसन्द करते हैं, अथवा सफेद वस्त्रों को अधिक धारण करते हैं वे
लोग सरलहृदय, निश्छल, निष्कपट, सादगीपसंद आडम्बररहित, बालकों की भांति भोले
मासूम या स्वच्छ हृदय वाले, शांत व सौम्य प्रवृति के, उदार, दयालु, उपकारी स्वभाव
वाले, खुशदिल, निश्चिंत, निर्भय तथा शुद्धात्मा होते हैं। (पेशे के कारण सफेद एप्रिन
पहनने वाले डॉक्टर नर्स तथा सफेद खद्दर पहनने वाले नेता इस श्रेणी में नहीं आते।
यद्यपि वे प्रायः सफेद रंग पहनते हैं अतः कुछ न कुछ उपरोक्त गुणों भावों से प्रभावित
होते हैं। किंतु अन्य रंगों के वस्त्र भी साथ में पहने गए होते हैं। दूसरे मजबूरी के तहत
सफेद वस्त्र पहने गए होते हैं। प्रायः मन से उन्हें सफेद रंग की बजाए कोई अन्य रंग
पसंद होता है। अतः उपरोक्त सिद्धांत को प्रयोग करते समय इन सम्भावनाओं का भी
विचार करें। सिद्धांत का 'अंधा प्रयोग' गलत निष्कर्ष पर पहुंचा सकता है)।

नोट-काले तथा सफेद रंग के लाभ भी असंतुलित होकर विकार उत्पन्न करने
पर रंग/ सूर्य चिकित्सा से प्राप्त किए जाते हैं और उन्हें संतुलित किया जाता है। (सफेद
रंग तो हमें प्रकाश में सहज ही प्राप्त होता है, किंतु काले रंग की पूर्ति गाढ़े नीले/ गाढ़े
हरे/गाढ़े ब्राऊन आदि रंगों से भी की जाती है। वैसे विरले ही मामलों के काले रंग की
कभी इस स्तर पर होती है, कि उसे बढ़ाने की आवश्यकता पड़े क्योंकि नकारात्मकता
किसी-न-किसी रूप में लोगों में विद्यमान रहती ही है और उसका कम होना ही उत्तम
होता है, इसलिए सामान्यतः इसे बढ़ाने की आवश्यकता ही नहीं होती। कम-से-कम
लौकिक मामलों में। परंतु आध्यात्मिक क्षेत्र में या आध्यात्मिक लाभ-प्राप्ति के लिए
कभी काले रंग का प्रभाव बढ़ाने की आवश्यकता भी पड़ जाती है, मगर युक्तिपूर्वक) ।


अन्य प्रमुख रंगों के प्रभाव बहुत कुछ मूल रंगों के प्रभाव पर ही आधारित होने
हैं। फिर भी कुछ प्रमुख भावों को यहां संक्षेप में पाठकों के लाभार्थ दे रहे हैं।





नारंगी/ संतरी केसरिया रंग-नारंगी तथा इसी परिवार के (लाल + पीले के
मिश्रण से बने रंग) अन्य रंग जोश, ऊष्मा, ऊर्जा, शक्ति, वीरता, पराक्रम और
जीवंतता के द्योतक हैं। अतः वीर, साहसी, आत्मविश्वासी और ऊर्जावान लोगों की
पसंद है नारंगी रंग। यह उत्साहवर्धक और सक्रियता के लिए प्रेरित करने वाला रंग
है। आलसी, प्रमादी, निर्बल, कायर, उत्साहहीन तथा आत्मबलहीन लोगों को इस रंग
की शरण लेनी चाहिए।




हरा (तोते जैसा, पतों जैसा, काई जैसा आदि)- हरा व इस परिवार के (नीले
+ पीले के मिश्रण से बने रंग) अन्य रंग उल्लास, खुशहाला सम्पन्नता, प्राकृतिक
प्रसन्नता, हर्ष, एवं रमणीयता को रिप्रजेन्ट करने वाले हैं। मस्तिष्क आंखों व शरीर को
• विश्राति प्रदान कर तरोताजा करते हैं। ताप को घटाने वाले तथा व्यग्रता को कम करने
वाले हैं। किंतु नीला रंग अधिक होना (गहरा हरा रंग) कुछ अकर्मव्यता भी (शिथिलता)
उत्पन्न करता है। जबकि पीले रंग की अधिकता वाला हरा रंग (तोते जैसा या कच्चे
• नीबू जैसा) हर्ष व प्रसन्नता की अधिकता से विश्रांति और सुकून तो देता है किंतु
शिथिलता या अकर्मण्यता नहीं आने देता। (ऐसा ही नारंगी रंग के परिवार के रंगों में
भी समझना चाहिए। लाल रंग की अधिकता ऊष्मा, ताप, क्रोध, हिंसा तथा बेचैनी को
बढ़ा देने वाली होती है, जबकि पीले रंग की अधिकता उमंग, उत्साह, सक्रियता और
जोश को बढ़ा देने वाली तथा सन्नद्धता उत्पन्न करने वाली होती है)।




बैंगनी/जामुनी/माँव/प्याजी रंग-जो रंग बैंगनी परिवार के हैं (लाल + नीले
के मिश्रण से बनने वाले) वे शिथिल और ऊर्जावान रंग के मिश्रण के कारण
अजीब-सा प्रभाव डालते हैं। ऐसे रंग पसंद करने वाले लोग कम विकसित मानसिक
स्तर/कम बौद्धिक सामर्थ्य वाले, ऊर्जावान एवं जल्दबाज किंतु शक्ति की कमी वाले
अतः अपने आवेगों तथा मनोभावों पर नियंत्रण न रख पाने वाले, अशिष्ट/गंवार/फूहड़
बचकाने स्वभाव वाले तथा एक हद तक असुरक्षा-बोध से ग्रस्त तथा अनिश्चित
विचारों वाले होते हैं। प्रायः बालकों तथा ग्रामीणों को ऐसे रंग अधिक पसंद होते हैं।
परंतु प्याजी/मॉव रंग में सफेद रंग का भी मिश्रण हो जाने से भावनात्मकता अधिक
शामिल रहती है। ऐसे लोग किसी का आश्रय या भावनात्मक सहारा पाने के लिए।
आतुर रहते हैं तथा Sex या विपरीत लिंगता के आधार पर भी सामने वाले का
सहयोग/सामीप्य पाना चाहते हैं। मानसिक रूप से ये अशक्त व एकाकी अनुभव
करते हैं। फिर भी यदि लाल रंग की अधिकता हो (फालसे जैसा रंग) जो ऊर्जा, जोश
व उमंग के संचारण के साथ सबके आकर्षण का केन्द्र बनने की इच्छा व चंचलता
का समावेश हो जाता है। किंतु नीले रंग की अधिकता हो (जामुन जैसा) तोनिद्रा/जड़त्व, आलस्य, प्रमाद, शिथिलता, अकर्मव्यता, उत्साहहीनता तथा लाचारगी जैसे भावों की (तमोगुण प्रधान) अधिकता प्रभाव समाविष्ट होता है।






फिरोजी/टर्किश ग्रीन / टर्किश ब्ल्यू - इस प्रकार के रंग नीले व हरे रंग के संयोजन से बनते हैं। ये रंग अपेक्षाकृत आकर्षक होते हैं तथा शांतिप्रद होते हुए भी इनसे एक शोखी उत्पन्न होती है। ऐसे रंग पसंद करने वाले लोग आडम्बरी स्वभाव के, सुख/ स्वार्थ को प्राथमिकता देने वाले, विलास-ऐश्वर्य-सौंदर्यप्रेमी, काम भावना युक्त, विपरीत लिंगी का सामीप्य पाने को आतुर होते हैं। यह रंग वस्तुतः कामुकता/ कामभावना को बढ़ाने वाला है। अन्य क्षेत्रों में यह सक्रियता प्रदान नहीं करता किंतु Sex के क्षेत्र में सक्रियता के लिए प्रेरित करता है। प्रायः सुंदर तथा कमनीय स्त्रियों को ऐसे रंग ही पसंद आते हैं। (यदि अन्य क्षेत्रों में ऊर्जा का स्तर बढ़ा हो तथा आत्मविश्वास से पूर्ण हो तो रानी फालसे जैसा/डीप पिंक रंग पसंद करती है। किंतु यदि कर्मठ व ऊर्जावान तथा आत्मबली न हो, मात्र Sex के क्षेत्र में ही अधिक रुचि, ऊर्जा व प्रेरणा हो तो फिरोजी/टर्किश रंग ही पसंद करती है)।

अन्य रंगों में हल्का गुलाबी-वासना, आकर्षण तथा उमग को, हल्का नीला / आसमानी- विस्तार, ताजगी, तथा खुलेपन के अहसास / स्वतंत्रता के भाव को, हल्का पीला (क्रीम) उल्लास, हर्ष, प्रसन्नता, चैतन्यता के भावों को भी स्थिरता व शांत तरीके से / गरिमापूर्वक (अतः शालीनता/गरिमा/परिपक्वता को), बसंती रंग-ज्ञान और विद्वत्ता को, एक उल्लास या मुस्कान के साथ, हल्का हरा रंग-उथले स्तर की शांति, असुरक्षा/ अशक्ता के कारण शांत बने रहने, अथवा असमंजस की स्थिति को, चॉकलेटी/भूरा रंग-दुविधा, उलझन, आशंका, अनिश्चितता/अनिर्णय की स्थिति तथा असुरक्षा-बोध को दर्शाने वाले रंग हैं। काले तथा सफेद रंग के संयोजन से बना 'ग्रे' (सिलेटी) रंग रहस्य, गोपनीयता, भेद, गहनता / गम्भीरता, अतिपरिपक्वता / वार्धक्य (बुढ़ापा) तथा धैर्य और दूरदर्शिता को प्रदर्शित करता है। क्योंकि इसमें सफेद चेतना (जागृति) और काला शिथिलता निष्क्रियता दोनों का ही समावेश है। सफेद रंग की अधिकता (Light Gray) परिपक्वता/ज्ञान या ऑब्जर्वेशन के कारण आने वाले स्थायित्व स्थिरता को प्रदर्शित करता है किंतु काले रंग की अधिकता (Dark (Gray) निष्क्रियता/भेद रहस्य / गोपनीयता प्रमाद के कारण होने वाली स्थिरता / जड़त्व का सूचक है)। यही कारण है कि प्रायः उच्चस्तरीय बिजनिसमेनों को ग्रे रंग अधिक पसंद होता है। वे इस रंग के वस्त्र अधिक पहनते हैं। जबकि नारंगी बसंती रंग में मिला सफेद रंग 'भगवा रंग' भक्ति, वैराग्य, समर्पण तथा ईश्वरीय शक्ति के सम्मुख समर्पण/त्याग के कारण उपजी शांति/हल्कापन/ स्थायित्व/अडिगता तथा चंचलता से रहित हो जाने का द्योतक है। यह ज्ञान की गहनता को भी परिलक्षित करने वाला आनन्दप्रद रंग है।

हमारे जीवन में रंगो का बहुत महत्व है इसलिए जीवन में रंगो का चयन बहुत ही ध्यान से करें।

जैन साध्वी महाप्रज्ञ 

शुक्रवार, 3 दिसंबर 2021

हाथ की बनावट बताए आपका स्वभाव

 समकोण वर्ग ( वर्गाकार या उपयोगी ) श्रेणी का तालिका 

'समखा' 'वर्गाकार' तालिका

इस श्रेणी के उत्पादों को 'चौकोर' श्रेणी में रखा जाता है। विशेष विवरण शामिल है, यह विवरण भी है। अंग नॉट रंग का रंग प्रोक्सी है।

इस तरह से लागू होने वाले वर्ड्स वादविवाद और पर्ण रूप से व्यावहारिक हैं। . आदर्शता और आदर्शवाद से संबंधित सभी बातें। ये विश्वदृष्टि से स्थापित प्रतिष्ठान, अमान विश्वाध्याय से मुक्त, दृढनिश्चंशी, घोष, दृढ निश्चय, वानशिल, धन दैव और दैवज्ञान वानस्पतिक, कार्यबल, वानरस्थ, साहस्त्र, अध्यवसायी, व्यवहार कुशल, अज्ञेयवादी, निश्छल, निशिल स्थायी रूप से पहचाने जाने वाले, वैलेंटाइन्स वाले व्यक्ति निश्चित रूप से संलग्न होंगे, जो निश्चित रूप से मजबूत होंगे, वे किसी भी असामान्य व्यक्ति से जुड़े होंगे, जो स्वयं के समान होंगे। प्रतिरोधक क्षमता।

इस श्रेणी के लोगों में प्रबलता अधिक नहीं होती है। अतः 
ये लोग किसी प्रकार का प्रदर्शन न करके अपना काम चुपचाप करते रहने में विश्वास रखते हैं तथा अवसर के अनुकूल अपने को ढाल (बदल) लेने में भी काफी पीछे नहीं रहते। इनकी भौतिक उन्नति का यही मुख्य रहस्य होता है, जिसके बल पर ये निरन्तर आगे बढ़ते चले जाते हैं। ये लोग स्वभाव के रूखे होते हैं तथा प्रत्येक बात की इतनी गहरी जाँच-पड़ताल करते हैं कि दूसरा व्यक्ति इनकी इस आदत से परेशान हो जाता है। जो बात इनके दिमाग में न बैठे, उसे मानने के लिये ये किसी भी प्रकार तैयार नहीं होते।



नवग्रह के रत्न

 रत्नों की जानकारी   यहां सिर्फ रत्नों के नाम बताएं गए है।  1. सूर्य ग्रह का रत्न मानिक्य व उपरत्न स्टार माणक, रतवा हकीक, तामडा,...