अंगूठे के अनेक प्रकार जाने कैसे होते है
अंगूठे के विषय में प्राच्य विद्वानों का मत निम्नलिखित है
(1) अंगूठे का प्रथम पर्व द्वितीय (मध्यम) पर्व की अपेक्षा बड़ा हो तो जातक प्रबल इच्छा शक्ति सम्पन्न, स्वतन्त्र विचारक, दूसरों के मन की बात जान लेने वाला, आस्तिक दार्शनिक, सद्गुणी, दृढ़ निश्चयी, परिश्रमी, संकटों का सामना करने का साहस रखने वाला तथा विरोधियों को भी चुप कर देने वाला होता है,
(2) ऊर्ध्व भाग अत्यधिक बड़ा हो तो जिद्दी, हठी, स्वेच्छाचारी, दम्भी, क्रोधी तथा झगड़ालू स्वभाव का होता है, परन्त वृद्धावस्था में बड़ा धर्मात्मा हो जाता है,
(3) दोनों पर्व समान लम्बाई के हों तो रजोगणी सफल जीवन बिताने वाला, मिलनसार, सन्मित्र, शान्त स्वभाव, झगड़े टण्टों से बचने
वाला तथा प्रशंसनीय होता है,
(4) द्वितीय पर्व बड़ा हो तो दुर्बल हृदय, कठिनाई अथवा संकट के समय घबरा जाने वाला, शंकालु, अविश्वासी, पराश्रयी, क्रोधी, परन्तु अशक्त होता है। ऐसे व्यक्ति के स्वार्थी मित्र अधिक होते हैं,
(5) द्वितीय पर्व अधिक बड़ा हो तो तार्किक (कुतर्की) एवं झगड़ालू प्रकृति का होता है, सभ्य समाज में उसे कोई आदरणीय स्थान प्राप्त नहीं होता।
(6) यदि द्वितीय पर्व अधिक बड़ा होने के साथ ही प्रथम पर्व की अपेक्षा पतला भी हो तो जातक अत्यधिक वाचाल, झक्की, अविचारी, इरादे का कच्चा, जल्दबाज, दूसरों की दृष्टि में अनादरणीय, जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में असफल तथा पराई-सीख में आकर अपनी ही हानि कर बैठने वाला होता है।
(7) यदि द्वितीय पर्व अधिक बड़ा होने के साथ अधिक मोटा भी है और उसके कारण अंगूठा पीछे की ओर अधिक न झुक पाता हो तो जातक बुद्धिमान, गम्भीर, समयानुकूल विचारों में परिवर्तन कर लेने वाला, स्वतन्त्र विचारक, तार्किक तथा प्रत्येक क्षेत्र में सफलता प्राप्त करने वाला होता है। ऐसे व्यक्ति के ऊपर दूसरों के कहने का कोई असर नहीं होता और वह दृढ़ निश्चयी होता है।
(8) यदि अंगूठे के दोनों पर्व लम्बाई, चौड़ाई तथा मोटाई में एक समान हों तो जातक आत्मविश्वासी, शान्त, दृढनिश्चयी, दूरदर्शी, तीव्र बुद्धि, आत्मसम्मानी तथा बहुत सोच-समझ कर काम करने वाला होता है। वह वितण्डावाद, कुतर्क तथा अशान्ति से दूर रहता है तथा अपनी निन्दा सुनकर भी शान्ति भंग नहीं होने देता। ऐसे लोगों को कोई धोखा नहीं दे सकता।
(9) यदि दूसरा पर्व बहुत अधिक छोटा हो तो जातक "भीरु प्रकृति, पराश्रमी एवं भला-बुरा सोचे बिना कार्य कर बैठने वाला होता है, जिसके कारण उसे असफलताएं मिलती हैं तथा पछताना पड़ता है।
(10) यदि दूसरा पर्व छोटा होने के साथ ही पतला भी हो तो उक्तदोष अधिक बढ़ जाते हैं।
(11) यदि दूसरा पर्व अधिक छोटा होने के साथ पहले पर्व के बराबर ही मोटा तथा सुदृढ़ हो तो जातक को धन कमाने के लिए इधर-उधर भटकना पड़ता है, उसमें निराशा की भावना अधिक पाई जाती है, परन्तु वह अपने अधिकांश कार्यों में सफल हो जाता है।
(12) यदि द्वितीय पर्व अधिक छोटा हो तथा अंगूठा पीछे की ओर झुंकने वाला भी हो तो जातक लालची एवं दिखावटी प्रेम प्रदर्शित करने वाला होता है। उसकी बातों में कुछ उदारता एवं सहानुभूति भी पाई जाती है, परन्तु वह भी झूठी ही होती है।
(13) द्वितीयपर्व के अधिक छोटे तथा पीछे की ओरमुड़ने वाले अंगूठे का मध्यभाग यदि प्रथम पर्व की भांति ही मोटा तथा सुडौल हो तो जातक मितव्ययी होने के साथ ही परोपकारी तथा शान-शौकत की जिन्दगी बिताने वाला होता है।
14. यदि अंगूठे का तृतीयपर्व (शुक्र क्षेत्रीय निम्न भाग) सामान्य रूप से ऊँचा, समतल, सुन्दर तथा सुदृढ़ हो तो जातक निश्छल प्रेम करने वाला, प्रेम सम्बन्धों का दृढ़ता पूर्वक पालन करने वाला, सर्वसाधारण के प्रति सहानुभूतिपूर्ण एवं संवेदनशील, शान्त प्रकृति, सतोगुणी, दुःख के समय भी धैर्य रखने वाला तथा सफल एवं सुखी जीवन बिताने वाला होता है।
(15) तृतीयपर्व अत्यधिक लम्बा, चौड़ा तथा उन्नत हो तो जातक प्रल विषयी, रजोगुणी, कामान्ध तथा अपने यश धन एवं समान को नष्ट कर बैठने वाला होता है। उसके जीवन में अशान्ति बनी रहती है।
(16) तृतीयपर्व अत्यधिक छोटा तथा लचीला हो तो जातक स्वार्थी, विवेक-विचार एवं हृदय शून्य, असत्यवादी, कलही, आलसी, कामान्ध, दुर्गुणी तथा दुःखी होता है। उसे जीवन के किसी भी क्षेत्र में सफलता नहीं मिलती।
Good knowledge maharaji
जवाब देंहटाएंVery nice article Sadhvi ji
जवाब देंहटाएं👌👌👌👌🙏🏻
जवाब देंहटाएंमैं आपके लेखों से हमेशा से प्रभावित रहा हु। गुरु जी। आभार हमें ज्ञान देने के लिए।🙏🏻🙏🏻
जवाब देंहटाएंVery nice information
जवाब देंहटाएंGood 😘🙏🏻
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